रायपुरएक घंटा पहलेलेखक: प्रमोद साहू
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महासमुंद में खम्हरिया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के फार्मासिस्ट संजय साहू ने गर्मी से पक्षियों को बचाने और दाना-पानी के लिए मिट्टी के बसेरे बनाकर बांटना शुरू किए। उन्होंने 2017 में बसेरे बनवाने शुरू किए। कुछ दिन में लोग साथ आने लगे और 5 साल में इस इस अभियान की ख्याति इतनी तेजी से फैली की छत्तीसगढ़ में 3 हजार से ज्यादा मिट्टी के बसेरे मुफ्त बांट दिए गए। अब हालात ये हैं कि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार से भी लोग मिट्टी के बसेरे मंगवा रहे हैं।
इस अभियान से काफी लोग जुड़ चुके हैं। इनमें से कुछ ने आम लोगों को मिट्टी का बसेरा बनाने की ट्रेनिंग देनी भी शुरू कर दी है। भास्कर से बातचीत में संजय ने बताया कि पांच साल पहले गर्मियों में वे घर में थे, तभी गर्मी के कारण पेड़ से दो पक्षी गिरे और तड़पने लगे। उन्हें उठाकर दाना-पानी दिया, पर बचे नहीं। इनके साथ अंडे भी गिरकर फूट गए।
तब खयाल आया कि गर्मी में पक्षियों के लिए कुछ करना चाहिए। इसके बाद पहला बसेरा प्लास्टिक का बनाया। इसे लगाने के बाद खयाल आया कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। तब मिट्टी से बसेरा बनाना शुरू किया। संजय ने अपने गांव में लोगों को मिट्टी के बसेरे बांटे तो लोग जुड़ने लगे।
स्कूली बच्चे जुड़े तो सोशल मीडिया में बात फैली। धीरे-धीरे इस मुहिम से काफी लोग जुड़ने लगे। लोगों ने मिट्टी के बसेरे बनाने के लिए आर्थिक सहयोग देना भी शुरू कर दिया। इसके बाद मिट्टी के बसेरे का यह अभियान – दो कदम प्रकृति की ओर, नाम से और आगे बढ़ गया है।
मध्यप्रदेश समेत कुछ राज्यों से भी आई मांग
संजय ने बताया कि वे सोशल मीडिया में बता रहे हैं कि मिट्टी का बसेरा कैसे बनाते हैं। इसके वीडियो पोस्ट किए हैं, ताकि लोग खुद मिट्टी का बसेरा बनाकर पेड़ों में रख दें। पक्षियों के लिए शहरों में घोंसले बनाने लायक सामग्री नहीं है। ऐसे में, मिट्टी का बसेरा उनके लिए मददगार हो सकता है। एक बसेरा बनाने में सिर्फ 60 रुपए खर्च आता है, इसलिए इसे आसानी से कर सकते हैं।
पशुओं का चारा व पानी के लिए भी बना रहे पात्र
पिछले कुछ साल से पशुओं के चारे के लिए मिट्टी और पत्थर के पात्र बनाए जा रहे हैं। उसे भी वितरण किया जा रहा है। जगह-जगह उनके लिए पानी रखने लिए पात्र बनाया जा रहा है। इसमें 200-300 रुपए खर्च आता है। इसके अलावा, पिछले दो साल में समिति ने महासमुंद और आसपास के लोगों की मदद से 1500 से ज्यादा पौधे लगाए हैं। स्कूली बच्चे और आसपास के लोग देखरेख कर रहे हैं।