जगदलपुर3 घंटे पहलेलेखक: मोहम्मद इमरान नेवी
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झीरम हमले को दस साल बीत गए, लेकिन झीरम और दरभा इलाके में कुछ नहीं बदला है। यहां फोर्स के दो नए कैंप खुल गए हैं। घाटी में जहां कांग्रेस के बड़े नेताओं को मारा गया, वहां एक स्मारक बन गया है।
झीरम घाटी में 25 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर हमला कर पार्टी की अग्रिम पंक्ति के नेताओं समेत 32 लोगों को किसलिए मारा? 10 साल बाद भी इस सवाल का सही जवाब किसी के पास नहीं है।
झीरम नरसंहार को लेकर पिछले 10 साल में खुफिया रिपोर्टों, जांच आयोग में हुई गवाही और पुलिस के अलग-अलग इन्वेस्टिगेशन के आधार पर कई तथ्य सामने आ चुके हैं। नया तथ्य यह भी आया है कि झीरम घाटी में नक्सलियों ने तकरीबन पौन किमी लंबा जो एंबुश हमले के लिए लगाया था, उसमें फ्रंट पर महिला नक्सली थीं।
इनमें से ज्यादातर वह थीं, जिनके परिवार 2011 के पहले तक बस्तर में चले सलवा जुड़ूम में उजड़ गए थे। कई चश्मदीदों के बयानों में यह बात आई है कि महिला नक्सलियों ने ही झीरम घाटी में सबसे ज्यादा हत्याएं की थीं। नक्सलवाद को करीब से जानने वाले लोग और सुरक्षा बलों के लिए खुफिया रिपोर्ट तैयार करने वाली एजेंसियों का मानना है कि बस्तर में सलवा जुडूम से बने हालात के कारण नक्सलवाद चरम पर पहुंचा।
झीरम हमला वर्ष 2013 में हुआ। सलवा जुड़ूम को सुप्रीम कोर्ट ने इससे दो साल पहले, वर्षा 2011 में अवैध करार दिया था, जिसके कारण सरकार ने अभियान बंद कर दिया था। इससे हजारों लोग बेघर हुए थे और कई मारे गए थे।
इसके बाद नक्सलियों ने अंदरूनी गांवों में सलवा जुडूम की उन यादों को और दर्द को उभारा, जो महिलाओं के मन में उनके पति-बच्चों के मारे जाने, घर जल जाने तथा गांव छूट जाने से उपजा था। रिपोर्ट्स के मुताबिक नक्सल संगठन में महिलाओं की सबसे ज्यादा भर्ती 2011 से 2013 के बीच हुई। सलवा जुड़ूम की वजह से बेघर हुई इन्हीं महिलाओं में से तेज-तर्रार को झीरम हमले में नक्सलियों ने सामने रखा।
जांच में अब तक… हाल में बना एक और न्यायिक आयोग
झीरम हमले में नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा जैसे कांग्रेस के कई बड़े नेता शहीद हुए थे। हमले के तत्काल बाद एक एफआईआर दरभा थाने में दर्ज की गई और राज्य पुलिस ने जांच शुरू की। इस बीच मामले की जांच की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) को दे दी गई। एनआईए की जांच के बीच राज्य सरकार ने एक न्यायिक जांच आयोग जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अगुवाई में गठित किया।
2018 में सत्ता परिवर्तन के बाद जांच में नया मोड़ याया, तब राज्य सरकार ने जांच के लिए अपनी एसआईटी बना दी। इधर, मिश्रा आयोग ने जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी। इसके बाद राज्य सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस सतीश अग्निहोत्री और जी मिनहाजुद्दीन का दो सदस्यीय जांच आयोग बना दिया। अभी इसकी जांच चल रही है।
क्या है सलवा जुडूम… गोंडी भाषा में इसका अर्थ है शांति मार्च
सलवा जुडूम शब्द का गोंडी भाषा में अर्थ है शांति यात्रा। यह अभियान भाजपा शासनकाल में जून 2005 में शुरू हुआ, लेकिन इसे बस्तर टाइगर कहे जाने वाले कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा का भी समर्थन था। इसके तहत बस्तर के दर्जनों अंदरूनी गंव के लोगों ने नक्सलियों के खिलाफ आवाज बुलंद की और अपने गांव छोड़कर सरकारी कैंपों में आ गए। ये लोग नक्सलियों के खिलाफ सरकारी अभियान में भी शामिल हुए।
लेकिन छह साल बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे अंसवैधानिक करार दिया, तब राज्य सरकार ने मुहिम बंद कर दी। कैंप बेसहारा हो गए। यहां से जो लोग अपने गांव लौटे, उनमें से काफी लोगों को नक्सलियों ने मार दिया।
श्रद्धांजलि दिवस आज, सीएम जाएंगे जगदलपुर
झीरम श्रद्धांजलि दिवस पर गुरुवार को सीएम भूपेश बघेल शहीद कांग्रेस नेताओं और जवानों को श्रद्धांजलि देने बस्तर जाएंगे। वे जगदलपुर में छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा का अनावरण भी करेंगे।
वर्दीधारी महिलाएं फ्रंट पर आक्रामक थीं
मले वाले दिन 25 मई 2013 को नक्सलियों ने एक लंबा एंबुश बनाया हुआ था। एक तरफ जंगल-पहाड़ थे तो दूसरी तरफ नक्सली। मैं और हमारे साथी जिस एंबुश में फंसे थे वहां मौके पर बड़ी संख्या में महिला नक्सली मौजूद थीं। सभी नक्सल वर्दी में थीं और अधिकांश नक्सलियों के पास एके-47 तथा इंसास जैसी राइफलें थीं, जो ट्रेंड नक्सलियों के पास रहती हैं। जहां हम फंसे थे, वहां कम से कम 25 वर्दीधारी महिलाएं थीं। ऐसा मंजर था कि जैसे यह हमला महिला नक्सलियों की कमांड में ही किया गया।
(जैसा कि हमले के समय मौजूद मलकीत सिंह गैंदू ने बताया)